समलेंगिकता
पिछले साल की ही बात हे कि जब एक महिला डॉक्टर की आत्महत्या का मामला अखबारो में आया था। अख़बार के अनुसार उसने ऐसा क़दम इसलिए उठाया क्योंकि शादी के बाद पति के साथ एक बार भी सम्बंध नहीं बन सके थे और फिर उसे ये पता चला कि उसका पति गे यानी समलेंगिक हे ।
ये हादसा समाज की समलेंगिकता के प्रति सोच की और इशारा करता हे । क्या वास्तव में ऐसी परिस्थिति में आप के पास और कोई विकल्प नहीं होता ? क्या समलेंगिक लोग भी आप और हमारे तरह सामान्य वेवाहिक जीवन जी सकते हे ? प्रश्न अनेक हे ?
सेक्शूअल और रोमांटिक आकर्षण से निर्धारित होता हे कि आप की ऑरीएंटेशन क्या हे। यदि आप केवल विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होते हे तो इसे असमलेंगिक ( Heterosexual) कहते हे ; यदि अपने ही लिंग के लोगों के प्रति आकर्षित होते हे तो पुरुषों में गे ( Gay) और महिलाओं में लेसबीयन ( lesbian) कहते हे और यदि आप अपने और विपरीत लिंग दोनो के प्रति आकर्षित हो तो द्विलै्गिक( Bisexual) कहते हे। एक श्रेणी और भी हे – अलैंगिक यानी आप ऊपर लिखे तीनों तरह के समूह में नहीं फ़िट होते अपितु आप में सेक्स का कोई आकर्षण ही नहीं होता ।ऐसे लोग कम ही होते हे और अपनी ज़िंदगी में संतुष्ट होते हे।
ऑरीएंटेशन कैसे डिवेलप होती हे –
इस तथ्य पर अभी एकमत नहीं हो पाया हे परंतु एक बात तो तय हे – आप समलेंगिकता या असमलेंगिकता में अपनी मर्ज़ी से चुनाव नहीं कर सकते । आप ऐसे ही जन्म लेते हे जैसे आप हे। आनुवंशिकता और गर्भावस्था के समय हॉर्मोन से इक्स्पोज़र इसके लिए ज़िम्मेदार हो सकते हे । समलेंगिक लोगों के मस्तिष्क के कुछ भाग थोड़े अलग होते हे । युवा होने पर आप स्वयं को कैसे पहचानते हो – आपको विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता हे या उसी लिंग के प्रति । इसी से ऑरीएंटेशन का पता चलता हे । यदि कोई ऐसे वातावरण में रहता हे जहाँ पुरुष से पुरुष के सेक्स की अधिक सम्भावना होती हे जैसे हॉस्टल में रहना, सुधार ग्रह या जेल में रहना तो सम लेंगिकता के पनपने के ज़्यादा आसार होते हे । ये भी निश्चित हे कि कोई किसी की लेंगिकता में अपनी मर्ज़ी से बदलाव नहीं कर सकता
ऐसे लोग कितने होते हे –
वयस्क जनसंख्या में 5% के लगभग गे ( समलेंगी पुरूष) और 1-2% लेसबीयन ( समलेंगी महिलायें ) होती हे – वहीं 2% द्विलैंगी होते हे । वास्तव में सही अनुमान लगाना असम्भव हे क्योंकि अधिकतर लोग इसे छुपा कर रखते हे । अधिकतर जगह इसे हिक़ारत की नज़र से देखते हे और भारत में तो ये एक क़ानूनी अपराध हे । इसलिमेरे अनुमान से ये आँकड़े कम ही होंगे ।
मेरे पास हाल में एक ईमेल आया जिसे किसी पुरूष मेडिकल डॉक्टर ने लिखा था । उसकी समस्या थी कि घरवाले उसकी शादी किसी लड़की से करना चाहते थे जबकि वो समलेंगिक होने के कारण ये शादी नहीं करना चाहता था। बड़ी दुविधा में था कि कैसे घर वालों को शादी से इंकार करे ? मैंने बड़ा सीधा सा उत्तर दिया कि न बता कर शादी कर के रोज़ रोज़ के तनाव से अच्छा हे कि अभी शांत होकर उन्हें सच्चाई बता दी जाए ।
इस से पता लगता हे कि जब किसी युवा पुरूष को पता लगता हे कि उसका सेक्शूअल आकर्षण पुरुषों की तरफ़ हो रहा हे तो अनेक बार बड़ी टेन्शन होती हे और डर लगता हे कि यदि मैंने ये बात घर के लोगों को बता दी तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी ? इसलिए अनेक उच्च शिक्षित युवा ये बात ज़ाहिर नहीं कर पाते । अनेक इसी कश्मकश में डिप्रेशन का शिकार हो जाते हे ।
ऐसे ही अन्य मामले में एक संभ्रांत घराने के उच्च शिक्षा प्राप्त इंजीनियर को घर वाले शादी के दो साल बाद मेरे पास ले कर आए क्योंकि अभी तक उसके पत्नी के साथ कोई शारीरिक सम्बंध नहीं बन पाए थे। जब मैंने इसके कारण का पता किया तो मरीज़ ने बहुत डरते डरते बताया कि वो समलेंगी हे । परंतु घर वालों को बदनामी के डर से नहीं बताया । ज़ाहिर हे इस मामले में उसका तलाक़ हो गया। उसने बताया कि उसे भी अपनी समलेंगिकता का पता एंजिनीरिंग कॉलेज में लगा था जब उसे दूसरे लड़कों से सेक्स का मन करने लगा . उसने भरसक प्रयास किया कि ऐसे ख़याल न आए परन्तु असफल रहने पर वो डिप्रेस रहने लगा । शादी के पहले भी किसी को न बता सका और अब जीवन से उकता चुका था । मैंने उसे एक दवा शुरू की जिस से उसे समलेंगिकता पर कंट्रोल हुआ और उसकी सामान्य सेक्स लाइफ़ शुरू हुई । निश्चित रूप से कई परिस्थितियों में ऐसे विचारों को या समलेंगिकता को बदला जा सकता हे ।
क्या समलेंगिक लोग जीवन भर वैसे ही रहती हे –
ये एक यक्ष प्रश्न हे- जो आज समलेंगिक हो – क्या हमेशा ही समलेंगिक रहेगा? इसका उत्तर हे – नहीं , ये आवश्यक नहीं हे । लेंगिकता समय के साथ बदल सकती हे । असल में दुनिया में अधिकतर लोगों की लेंगिकता को समय के हिसाब से असमलेंगिकता और समलेंगिकता के स्पेक्ट्रम पर देखा जा सकता हे , एक सिरे पर असमलेंगिक और दूसरे पर समलेंगिक। अधिकांश की लेंगिकता इन दो छोरों में से किसी जगह फ़िट हो सकती हे
– जैसे कोई 100% असमलेंगिक हे तो दूसरा 50% समलेंगिक और 50% असमलेंगिक और तीसरा 100% समलेंगिक । जो थोड़ा सा भी असमलेंगिक हे , वो दोनो लिंगो के लोगों से संतुष्टिजनक सेक्स कर सकता हे । अनेक बार लोग इसी धुरी पर थोड़े इधर या उधर होते रहते हे परंतु ये एक सफल वेवाहिक जीवन जी सकते हे । अनेक लोग केवल कल्पना में समलेंगिक होते हे परंतु वास्तव में समलेंगिक सेक्स नहीं किया होता हे और न ही ऐसा करने की कोई विशेष रुचि होती हे । ऐसे लोग भी शादी कर सकते हे
कई बार समलेंगिक व्यवहार किसी मानसिक रोग के कारण होता हे जिसमें एक झक्कीपने या झोंक में समलेंगिक सेक्स हो जाता हे , हालाँकि बाद में काफ़ी पछतावा भी होता हे और ऐसे लोग अपने घर के लोगों को ये सब बता देते हे ।
हाल में सलिल ,इंजीनियर , उम्र 39 मेरे पास आया जिसकी शादी को 13 वर्ष हो चुके थे । उसकी पत्नी ( रेखा) का कहना था कि उसके साथ धोखा हुआ हे क्योंकि सलिल ने वायदे के बावजूद तीन दिन पहले गे सेक्स किया । शुरू के तीन वर्षों में सेक्स लाइफ़ एकदम बढ़िया थी परंतु तब सलिल कुछ समय विदेश अपनी कम्पनी के काम से गया था तो वापिस आकर सीधा बोला कि मुझे तुम से तलाक़ चाहिए । मेरे पैरों तले की ज़मीन खिसक गयी पर मैंने सोचा किसी गोरी मेम के चक्कर में आ गया होगा । बहुत कहने पर मुझे भी विदेश साथ ले गया तो मुझे पता लगा कि इसको गे सेक्स का चस्का पद गया हे । अब सलिल ने बताया कि उसने कुल दो या तीन बार गे सेक्स किया था परंतु अब भविष्य में ऐसा नहीं करेगा ।मैं सलिल से बहुत प्यार करती हूँ और इसे खोना नहीं चाहती इसलिए मैंने सोचा कि अब ये गे सेक्स नहीं करेगा , परंतु तीन दिन पहले फिर इसने ऐसा ही किया इसलिए अब मेरे पास तलाक़ के सिवा कोई चारा नहीं हे । जब मैंने सारी हिस्ट्री ली तो पाया कि उसे बाई पोलर नाम की एक मानसिक तकलीफ़ थी और इसी के चलते कभी कभी उसमें कामेच्छा काफ़ी बढ़ जाती थी और स्वयं पे नियंत्रण कम हो जाता था । ऐसे में बिन सोचे समझे रिस्क वाले कार्य कर लेता था जिसका बाद में पछतावा भी होता था । ऐसे में मैंने रेखा को सारी बात बताई और उचित दवा शुरू की , जिस से अब उसके व्यवहार में स्थायित्व हे। सलिल का समलेंगिक व्यवहार एक मानसिक रोग के कारण था ।
क्या समलेंगिकता का इलाज हो सकता हे-
काफ़ी समय तक समलेंगिकता को एक बीमारी समझा जाता था । एक समय में इसे मानसिक बीमारी मान कर इसे बदलने का प्रयास होता था । जानकारी के अभाव में अभी भी कुछ लोग ऐसा प्रयास करते हे । परंतु अब ये मानते हे कि ये अपने आप से कोई बीमारी नहीं हे जिसका इलाज हो सके । कुछ लोग जन्म से ही थोड़े अलग होते हे । इसलिए इन्हें भी सामान्य लोगों की तरह ही मान्यता होनी चाहिए।
यदि इस से आप अत्यधिक आहत हे और चाहते हे कि ऐसे विचारों से मुक्ति पा ले तो दवा से फ़ायदा हो सकता हे । यदि समलेंगिकता व्यवहार में बदलाव का एक हिस्सा हे तो भी सम्भव हे आप की मानसिक समस्या के उपचार से इस तरह के व्यवहार में क़ाबू हो सके। परंतु यदि आप दृढ़ संकल्प हे कि समलेंगिकता ही आपके जीवन की वास्तविकता हे और इस से आप संतुष्ट हे तो फिर कुछ नहीं हो सकता ।