शादीशुदा लोगों में से लगभग पंद्रह प्रतिशत को गर्भ धारण में दिक़्क़त होती हैं। शादी के बाद एक वर्ष तक यदि नियमित सेक्स के बावजूद गर्भ धारण ना हो तो कोई न कोई समस्या हो सकती हैं।
सबसे पहले पुरुष के वीर्य की जाँच करनी चाहिए। आप हॉस्पिटल में जाकर हस्तमैथुन से वीर्य का सैम्पल दे सकते हैं। इसके लिए एक दिन के गप की ही ज़रूरत होती हैं।
सामान्यत बीस मिलीयन शुक्राणु से अधिक संख्या और पचास प्रतिशत से अधिक छपलता या मूव्मेंट हो तो सामान्य समझा जाता हे । लगभग आधे मामलों में गर्भ धारण न कर पाने का कारण शुक्राणु समस्या होती हैं।
इसमें या तो संख्या कम हो सकती हैं ,( Oligospermia) छपलता कम हो सकती हैं ( Asthenospermia) या फिर वीर्य से शुक्राणु पूरी तरह से नदारद हो सकते हैं ( Azoospermia).
इसके कई कारण हो सकते हे – ( Azoospermia)
1- आपकी टेस्टिस में शुक्राणु बनते ही नहीं तो निल शुक्राणु ही होंगे। ऐसे मरीज़ों में छोटे से ऑपरेशन से टेस्टिस के टुकड़े की लैब में जाँच होती हैं जिस से इस समस्या का तुरंत पता लग जाता हैं।
2- आपकी टेस्टिस में शुक्राणु बनते भी हैं, मैचयौर भी होते हे परंतु वास नली अवरुद्ध होने से बाहर नहीं जा पाते। ऐसे में ऑपरेशन से ये रुकावट खुल सकती हैं।
शुक्राणु की कमी ( Oligospermia) एवम् चपलता की कमी- इसके भी अनेक कारण हो सकते हैं –
1- वैरिकोसील (Varicocele) – टेस्टिस से हृदय की तरफ़ के रक्त संचार की व्यवस्था छोटी छोटी वेन के माध्यम से होती हैं। किन्हीं कारणो से ये व्यवस्था दोषपूर्ण हो जाती हैं और रक्त संचार अपूर्ण धीमा हो जाता हैं। नतीजा होता हे कि इन शिराओं का साइज़ बड़ जाता हैं और टेस्टिस के आसपास एक से दो डिग्री तक तापमान बड़ जाता हैं । शुक्राणु बनने में ये सबसे बड़ी बाधा होती हैं। वास्तव में शुक्राणु समस्या के मामलों में से सत्तर प्रतिशत बार यही बात समस्या की जड़ होती हैं। और इसे माइक्रस्कापिक सर्जरी से ठीक कर सकते हैं
2- वीर्य में संक्रमण – कई बार पार्ट्नर से या अपने आप वीर्य में संक्रमण हो जाता जिससे गर्भ धारण मुश्किल होता हैं। दोनो पार्ट्नर्ज़ का उपचार एक साथ करना चाहिए।
3- वीर्य में उपस्थित ऐंटीबाडीज़- कई बार वीर्य में ऐसे मॉलक्यूल होते हैं जो अपने शरीर में पैदा होने पर भी अपने शरीर को नुक़सान देते हैं। सामान्य तौर पर ऐसे मालक्यूल बाहरी तत्त्वों जैसे रोगाणुओं से बचाव का काम करते हैं परंतु इन ख़ास परिस्थितियों में अपने शरीर के तत्त्वों को ही हानि पहुँचाते हैं। इसके लिए IUI का सहारा लिया जाता हैं।